प्रस्तावित वक्फ अधिनियम पर विचार-विमर्श के लिए बुलाई गई संसद की संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी की बैठक का विपक्षी सदस्यों ने जिस तरह फिर से बहिष्कार किया, उससे यही लगता है कि वे इस विषय पर चर्चा से बचने की ताक में रहते हैं। इस बार विपक्षी सदस्यों ने जेपीसी बैठक का बहिष्कार इसलिए किया, क्योंकि उन्हें दिल्ली वक्फ बोर्ड की प्रस्तुति रास नहीं आई। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली वक्फ बोर्ड प्रशासक ने मुख्यमंत्री की मंजूरी के बिना बोर्ड की रिपोर्ट बदल दी। पता नहीं सच क्या है, लेकिन वे जिस तरह कुछ समय बाद बैठक में लौट आए, उससे यही पता चलता है कि उनकी आपत्ति निराधार थी और उनका मकसद हंगामा खड़ा करना था।

विपक्षी सदस्य इसके पहले भी जेपीसी बैठक का बहिष्कार कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त यह भी किसी से छिपा नहीं कि करीब एक सप्ताह पहले जेपीसी बैठक में तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी इतना भड़क गए थे कि उन्होंने कांच की बोतल तोड़कर उसे जेपीसी अध्यक्ष की ओर फेंक दिया था। इस कोशिश में वह खुद को चोटिल कर बैठे थे। उनकी इस हरकत के लिए उन्हें एक दिन के लिए निलंबित भी किया गया था।

मौजूदा वक्फ अधिनियम बेहद विवादित है। वह केवल वक्फ बोर्डों को मनमाने अधिकार ही नहीं देता, बल्कि न्याय के बुनियादी सिद्धातों का उल्लंघन भी करता है। इस अधिनियम में बदलाव अपेक्षित ही नहीं, अनिवार्य है। यह समझ आता है कि विपक्ष को इस अधिनियम में संशोधन-परिवर्तन की पहल पसंद नहीं, लेकिन यदि वह यह समझ रहा है कि उसके बेवजह शोर मचाने और यहां तक कि जेपीसी बैठक का बहिष्कार करने से यथास्थिति कायम रहेगी तो ऐसा होने वाला नहीं है। यह सब करके वह सत्तापक्ष के शासन करने के अधिकार को नहीं छीन सकता। यदि जेपीसी में शामिल विपक्षी सदस्यों को यह लगता है कि मौजूदा वक्फ अधिनियम में किसी तरह के संशोधन की आवश्यकता नहीं तो उन्हें इसे अपने तर्कों से सिद्ध करना चाहिए।

उन्हें जेपीसी में अपनी बात कहने पर जोर देना चाहिए, न कि इस पर कि कोई बात ही न होने दी जाए। यह कहने से काम चलने वाला नहीं है कि सरकार की नीयत ठीक नहीं और पुराने वक्फ अधिनियम में कहीं कोई खामी नहीं। यदि उन्हें वक्फ अधिनियम में कोई कमी नहीं दिखती तो क्या वे इसकी पैरवी करेंगे कि कोई सनातन भू अधिनियम भी बना दिया जाए और उसके बोर्डों को भी वक्फ बोर्डों जैसे अधिकार दे दिए जाएं, जिससे वह जिस भूमि को चाहे, अपनी बता दे और पीड़ित की कहीं कोई सुनवाई न हो सके। यदि विपक्षी नेता इससे अवगत नहीं कि वक्फ बोर्ड किस तरह मनमाने ढंग से जिसकी चाहे उसकी जमीन को वक्फ संपत्ति करार दे रहे हैं और इस क्रम में पूरे गांव तक पर अपना दावा कर दे रहे हैं तो वे खुद को धोखा ही दे रहे हैं।