प्रधानमंत्री मोदी ने जयप्रकाश नारायण की जयंती पर दो प्रमुख कृषि योजनाओं की जो शुरुआत की, उसे किसानों के लिए दीवाली उपहार की संज्ञा दी जा रही है, लेकिन बात तब बनेगी, जब ये योजनाएं सही तरह लागू होंगी। ऐसा होने पर ही सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि मोदी सरकार की ओर से पिछले 11 वर्षों में कृषि उत्थान और किसानों के कल्याण के लिए कई योजनाएं शुरू की गईं, लेकिन न तो किसानों की आय दोगुनी हो सकी और न ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था अपेक्षा के अनुरूप सशक्त हो सकी।

प्रधानमंत्री ने 35 हजार करोड़ रुपये से अधिक की जो दो बड़ी योजनाएं शुरू कीं, उनमें एक पीएम धन धान्य कृषि योजना है। इसके जरिये सौ पिछड़े जिलों में कृषि उत्पादकता वृद्धि, फसल विविधीकरण, सिंचाई एवं भंडारण सुविधा में सुधार और आसान ऋण उपलब्धता पर बल दिया जाएगा। प्रधानमंत्री की ओर से शुरू की गई दूसरी योजना दलहन आत्मनिर्भरता मिशन है। इसका लक्ष्य 2030-31 तक दलहन का उत्पादन 252.38 लाख टन से बढ़ाकर 350 लाख टन करना है, ताकि दालों के आयात को खत्म किया जा सके।

यह एक विडंबना ही है कि कृषि प्रधान देश होते हुए भी हम दालों के आयात पर निर्भर हैं। देश में तिलहन उत्पादन की स्थिति भी अच्छी नहीं। दलहन मिशन को आगे बढ़ाते समय उन कारणों पर भी विचार किया जाना चाहिए, जिनके चलते दलहन उत्पादन बढ़ाने के अभी तक के प्रयास सफल नहीं हो सके। इन दो योजनाओं के अतिरिक्त प्रधानमंत्री ने पशुपालन, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ी योजनाओं का भी उद्घाटन किया और यह भरोसा जताया कि इनसे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में मदद मिलेगी।

ऐसा वास्तव में हो, इसके लिए राज्य सरकारों को भी सहयोग करने के लिए आगे आना होगा। उन्हें यह समझना होगा कि कृषि के समवर्ती सूची का विषय होने के नाते ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान की चिंता करना उनका भी दायित्व है। अभी तो यह देखने को अधिक मिलता है कि विरोधी दलों की राज्य सरकारें केंद्र की योजनाओं में या तो समुचित सहयोग नहीं करतीं या फिर उनमें मीन-मेख निकालती हैं।

चूंकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान में कई केंद्रीय मंत्रालयों की भूमिका है, इसलिए उचित यह होगा कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेरी मंत्रालय, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय, जल शक्ति मंत्रालय और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय मिलकर काम करें। और भी अच्छा यह होगा कि इन सब मंत्रालयों की किसी नोडल एजेंसी के जरिये कृषि और किसान कल्याण की सभी योजनाएं चलाई जाएं।