विचार: आवश्यक है नए शहरों का निर्माण, शहरीकरण की चुनौती का सामना
यह जीडीपी वृद्धि को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देता है। चीन इसका जीता-जागता उदाहरण है। अनुमान है कि पिछले 40 वर्षों के दौरान चीन ने 3,800 नए शहरों का निर्माण किया है। इनमें 15 करोड़ से अधिक लोग निवास करते हैं। भारत को अगर 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की संकल्पना को साकार करना है तो यह लक्ष्य हजारों नए छोटे और मध्यम आकार के शहरों के निर्माण के बिना हासिल करना संभव नहीं लगता।
HighLights
शहरीकरण से निपटने के लिए नए शहर आवश्यक
आईटी हब शहरों पर बढ़ता दबाव
जीएन वाजपेयी। बीते दिनों बेंगलुरु जाना हुआ। एयरपोर्ट से बाहर निकलते वक्त रात हो गई थी और यह वह समय होता है जब माना जाता है कि शहर में ट्रैफिक के चरम की स्थिति निकल चुकी होती है। इसके बावजूद शहर के एक प्रमुख केंद्र रिचमंड सर्कल तक पहुंचने में डेढ़ घंटे से अधिक का समय लग गया। सफर अपेक्षाकृत लंबा था तो इस दौरान ड्राइवर ने उन समस्याओं की ओर संकेत करना भी शुरू किया कि कैसे शहर से आइटी कंपनियां स्थानांतरित होने लगी हैं और अन्य इलाकों में नए कैंपस बनने शुरू हो गए हैं।
अभी बहुत ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब कर्नाटक सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री और कारपोरेट जगत की एक दिग्गज के बीच शहर के लचर बुनियादी ढांचे को लेकर कहासुनी हुई थी। बेंगलुरु की कहानी दर्शाती है कि भारत का आइटी हब कहा जाने वाला यह शहर अपनी ही सफलताओं के बोझ तले दबा हुआ है। देश में आइटी उद्योग तेजी से फैल रहा है और कई राज्यों ने उद्यमियों को अपने यहां प्रतिष्ठान स्थापित करने के लिए लाल कालीन बिछाना शुरू कर दिया है।
वैसे तो पूर्वी और उत्तर भारत के शहर आइटी प्रतिभाओं की खान हैं, लेकिन इन क्षेत्रों के शहर उद्यमियों की संभावना सूची में नहीं हैं। वहीं, उपलब्ध जानकारियों से यह भी सामने आ रहा है कि जोहो, एसएपी, पेपाल और एनवीडिया आदि के एक तिहाई से अधिक कर्मचारी टीयर 3 कालेजों से आते हैं। उद्यमियों को लुभाने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आइटी और डाटा केंद्रों सहित नौ औद्योगिक और वाणिज्यिक क्लस्टरों के लिए भूमि आवंटित करने की घोषणा की है, पर यह पर्याप्त नहीं। प्रौद्योगिकी-आधारित औद्योगिक और वाणिज्यिक केंद्र मानव संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करते हैं।
इस समय जेन जी बहुत चर्चा में है। वर्ष 1997 से 2012 के बीच जन्मे लोगों की यह पीढ़ी भविष्य के लिए प्रतिभा पूल का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनने जा रही है। यह पीढ़ी कामकाज के लिए ऐसा परिवेश चाहती है, जो लचीलेपन, मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर जोर देता हो। यह पीढ़ी कामकाजी जीवन और निजी जिंदगी में संतुलन को प्राथमिकता देती है और पिछली पीढ़ियों के पारंपरिक रुख-रवैये को खारिज करती है। इस पीढ़ी को एक जीवंत सामाजिक परिवेश पसंद है। बेंगलुरु और भारत के अन्य महानगर इस प्रकार का परिवेश प्रदान नहीं करते। वहां, प्रवासन अनिवार्य है।
वैश्विक आइटी हब कही जाने वाली अमेरिका की सिलिकान वैली को देखें तो यह करीब एक दर्जन छोटे कस्बों-शहरों में फैली हुई है। प्रमुख वैश्विक आइटी दिग्गजों के मुख्यालय इन इलाकों में स्थित हैं। एपल क्यूपर्टिनो में, गूगल माउंट व्यू में, मेटा मेनलो पार्क में और सिस्को सैन जोस में। इनमें से कोई भी नगर दस लाख की जनसंख्या से अधिक का नहीं है। वहां किसी भी कामकाजी व्यक्ति के लिए अपने बच्चे को स्कूल से लेना और घर पर ही लंच का लुत्फ उठाना संभव है।
आइटी हब का इकोसिस्टम ऐसे ही नहीं स्थापित होता। उसमें गहरे प्रतिभा पूल, विश्वविद्यालय-उद्योग के बीच मजबूत संबंध, सहायक बुनियादी ढांचा और जीवन, निवास और संपत्ति की सुरक्षा में विश्वास जैसे पहलू शामिल हैं। ऐसे इकोसिस्टम का निर्माण भौतिक बुनियादी ढांचे से शुरू होता है। इसमें उत्तर प्रदेश की ही मिसाल लें तो राज्य की एक्सप्रेसवे निर्माण में सफलता प्रशंसनीय है।
सभी एक्सप्रेसवे राज्य के महत्वपूर्ण शहरों से होकर गुजरते हैं, जहां कुछ प्रसिद्ध विश्वविद्यालय स्थित हैं। इसलिए, उन एक्सप्रेसवे के साथ 150 किमी के दायरे में भौतिक बुनियादी ढांचा विकसित करना समझदारी भरा है। इसमें यह ध्यान रखना होगा कि प्रस्तावित क्लस्टर मुख्य शहर के बहुत करीब नहीं होने चाहिए, ताकि वे एक समूह का हिस्सा न बन जाएं और प्रतिभा की अपेक्षाओं पर खरे न उतर सकें।
एक नए क्लस्टर शहर निर्माण की रूपरेखा में औद्योगिक और वाणिज्यिक परिसरों और एक आवासीय टाउनशिप को शामिल करना चाहिए। एक आधुनिक टाउनशिप के निर्माण में धैर्यशील पूंजी, जोखिम उठाने की मानसिकता, शहर योजनाकारों, आधुनिक निविदाओं और सुगम शासन की आवश्यकता होती है।
इस पैमाने पर सफलता को शहर के निर्माण की गति और गुणवत्ता से मापा जाना चाहिए। इसमें ‘बिल्ड, आपरेट और ट्रांसफर’ का सिद्धांत सबसे व्यावहारिक विकल्प है। इसके लिए लीज कम से कम 99 वर्षों के लिए होनी चाहिए और इसे आगे 99 वर्षों के लिए बढ़ाया जा सकता है, ताकि पूंजी पर रिटर्न आकर्षक हो। निविदा के लिए आमंत्रण वैश्विक होना चाहिए।
यह किसी से छिपा नहीं है कि भारतीय शहरों में भीड़भाड़ बढ़ रही है। शहरी नवीनीकरण और स्मार्ट सिटी कार्यक्रम का प्रभाव बहुत सीमित रहा है और जीवन की सुगमता में बमुश्किल ही कोई सुधार हुआ है। तमाम नए छोटे और मध्यम आकार के शहरों का निर्माण करके ही तेजी से बढ़ती शहरीकरण की चुनौती का सामना किया जा सकता है।
वास्तव में, नए शहरों का विकास शहरी विकास को प्रबंधित करने, संगठित बुनियादी ढांचा विकसित करने, भीड़ को कम करने, आवाजाही में लगने वाले समय को घटाने और कम लागत पर बेहतर जीवन स्तर उपलब्ध कराने की दिशा में एक रणनीतिक दृष्टिकोण प्रदान करता है। आर्थिक रूप से भी नए शहर आकर्षण से ओतप्रोत होते हैं। वे नौकरी के अवसर सृजित करते हैं, निवेश को आकर्षित करते हैं और पूरक और सहायक व्यवसायों और सेवा उद्यमों का निर्माण करते हैं।
यह जीडीपी वृद्धि को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देता है। चीन इसका जीता-जागता उदाहरण है। अनुमान है कि पिछले 40 वर्षों के दौरान चीन ने 3,800 नए शहरों का निर्माण किया है। इनमें 15 करोड़ से अधिक लोग निवास करते हैं। भारत को अगर 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की संकल्पना को साकार करना है तो यह लक्ष्य हजारों नए छोटे और मध्यम आकार के शहरों के निर्माण के बिना हासिल करना संभव नहीं लगता।
(लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं)













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