गौरव वल्लभ। चार नई श्रम संहिताओं पर अमल समय की मांग को पूरी करने वाली एक बड़ी पहल है। इससे पहले की व्यवस्था में नियोक्ताओं को वेतन, कार्य स्थितियों और रोजगार श्रेणियों को असंगत तरीकों से परिभाषित करने वाले 29 अलग-अलग कानूनों का पालन करना पड़ता था। उनके स्थान पर नई संहिताओं में कानूनों को सुगम बनाया गया है। ये संहिताएं राज्यों में समान परिभाषाएं, सभी श्रमिकों के लिए लिखित नियुक्ति पत्र, समय पर वेतन भुगतान के लिए स्पष्ट नियम, गिग-प्लेटफार्म श्रमिकों की मान्यता, अद्यतन स्वास्थ्य और सुरक्षा मानकों के साथ ही एक सरल राष्ट्रीय अनुपालन संरचना की रूपरेखा तैयार करती हैं।

पुरानी व्यवस्था में अस्पष्ट परिभाषाएं, सीमाओं में दखल और राज्यों के स्तर पर भिन्नताओं से कंपनियों को तमाम अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता था। किसी राज्य में प्रवेश से पहले कंपनी के समक्ष नए सिरे से अनुपालन की सिरदर्दी बढ़ जाती थी। इसके चलते विनिर्माण और लाजिस्टिक्स कंपनियों का विस्तार सीमित ही रहा। नई संहिताओं में अनिश्चितताओं को दूर किया गया है। स्पष्ट एवं एकसमान परिभाषाएं, पंजीकरण और रिटर्न की एकल प्रणाली, विस्तार के लिए नियामकीय परिदृश्य में सुसंगति इनके मूल में हैं।

ये सुधार कारोबारी सुगमता बढ़ाते हैं। स्मरण रहे कि किसी देश की नियामकीय गुणवत्ता केवल सुधारों से ही नहीं, बल्कि नियमों के पूर्वानुमान से भी आंकी जाती है। जब कंपनियां कानूनी जटिलताओं से मुक्त होकर अपनी जिम्मेदारियों को समझती हैं तो अनुपालन भी आसान एवं नियमित हो जाता है। तब निवेश निर्णय से लेकर सब्सिडी को लक्षित करना कही बेहतर हो जाता है। जोखिम घटने से काराबोरी परिवेश के प्रति भरोसा बढ़ता है।

आर्थिक दृष्टिकोण से यह परिवर्तन औपचारिक या संगठित रोजगारों को प्रोत्साहन देता है। नियुक्ति पत्र, स्पष्ट वेतन दायित्व और समन्वित श्रेणियां उन अनिश्चितताओं को दूर करती हैं, जो पहले अनौपचारिक रोजगारों को जारी रखने की गुंजाइश देती थीं। याद रहे कि रोजगारों की औपचारिक प्रवृत्ति उत्पादन को बढ़ाने में भी सहायक बनती है। दस्तावेजीय अनुबंध और वेतन चक्र को लेकर सुनिश्चित होने से श्रमिक न केवल अधिक समय तक कार्य करने को लेकर तैयार रहते हैं, बल्कि नए कौशल सीखने के प्रति तत्पर होकर अपनी कुशलता बढ़ाने को भी प्रेरित होते हैं। अंतत: इसका लाभ कंपनियों के लिए कार्यबल की क्षमताओं में सुधार और समग्र परिणामों में प्रत्यक्ष होता है। ये परिवर्तन भी किसी जबरन तरीके के बजाय संगठित एवं संस्थागत माध्यम से श्रम बाजार की दक्षता को बढ़ाते हैं।

भारतीय श्रम बाजार स्थापित कानूनों की तुलना में कहीं तेजी से विकसित हुआ है। शहरी सेवाओं का बड़ा हिस्सा अब प्लेटफार्म आधारित कार्यों से संचालित हो रहा है। यह नई व्यवस्था पुराने कानूनों में फिट नहीं हो पा रही थी। ऐसे में इन श्रमिकों को मान्यता देकर और उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए नई राहें खोलकर एक बड़े अंतर की भरपाई की गई है। एक बेहतर श्रम बाजार वही होता है, जो नवाचार से किनारा करने के बजाय नई आवश्यकताओं के अनुरूप स्वयं को ढालकर नए कार्यों को मान्यता प्रदान करने को प्राथमिकता दे।

कामकाजी आबादी में महिलाओं की भागीदारी को भी नई श्रम संहिताओं से मदद मिलेगी। पुराने कानून नाइट शिफ्ट में महिलाओं के कामकाज को बाधित कर उनके समक्ष विकल्प सीमित करते थे। उनके लिए उचित सुरक्षा व्यवस्थाओं के साथ भागीदारी की अनुमति देना एक अधिक समावेशी श्रम आपूर्ति का आधार तैयार करता है। वैश्विक उदाहरण इसके प्रमाण हैं कि श्रम बल में महिलाओं की ऊंची भागीदारी वाली अर्थव्यवस्थाएं कहीं अधिक लचीली, विविधतापूर्ण और व्यापक रूप से उत्पादक होती हैं। यह भी अक्सर देखने को मिलता है कि नियमों में जटिलता और अनुपालन लागत का बढ़ना निवेश के प्रति कंपनियों को उदासीन बनाता है। वे विस्तार को टालती हैं। इससे भर्तियों पर भी असर पड़ता है। इस कड़ी में नई संहिताओं के माध्यम से स्पष्ट नियमों और सरल प्रक्रियाओं के माध्यम से कई बाधाएं दूर हुई हैं। एकल लाइसेंस एकल राष्ट्रीय रिटर्न और सुव्यवस्थित पंजीकरण प्रशासनिक हीलाहवाली को दूर करते हैं।

श्रम नियमन किसी देश की संस्थागत अवसंरचना का हिस्सा है। इनका विरूपित, अस्पष्ट या असमान रूप से लागू होना कंपनियों को रक्षात्मक बनाता है। इसके चलते वे अतिरिक्त सतर्कता का सहारा लेती हैं। नियमन के सुसंगत, सुस्पष्ट एवं पूर्वानुमानित होने से कंपनियों की आकांक्षाएं परवान चढ़ती हैं। इस संदर्भ में नई श्रम संहिताएं सकारात्मक संकेत करती हैं। वे जटिलताओं के जाले हटाने, प्रोत्साहन को नए सिरे से आगे बढ़ाने और टकराव के बिंदुओं को घटाने का काम करती हैं।

सम्मिलित रूप में ये परिवर्तन विकास की गति को बढ़ावा देने का काम करते हैं। हालांकि किसी भी सुधार के माध्यम से अभीष्ट की प्राप्ति तभी संभव है, जब उन पर सही ढंग से अमल किया जाए और नई श्रम संहिताएं भी इसमें कोई अपवाद नहीं। इन्हें अपेक्षित रूप से आगे बढ़ाने के लिए कुछ उपाय करने होंगे। इसमें राज्यों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। उन्हें नियमों को सरल बनाना होगा। सुधारों की सफलता के लिए डिजिटल सिस्टम को भी सुचारु रूप से कार्य करना होगा।

कुछ पहलुओं को छोड़ दिया जाए तो नई श्रम संहिताएं आवश्यक संतुलन साधने में सफल दिखती हैं। वे नियामकीय आधार को आधुनिक बनाने, औपचारीकरण के समर्थन और अनिश्चितताओं को दूर करती हैं। इससे उद्यमियों के लिए कारोबारी संचालन का अनुकूल परिवेश तैयार होता है। यह परिवर्तन आत्मविश्वास से ओतप्रोत एवं कार्य की दृष्टि से बेहतर आर्थिक परिदृश्य का आधार बनाता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में ये नई श्रम संहिताएं वर्ष 2047 तक विकसित भारत के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ये परिवर्तन श्रमिकों और उद्यमियों दोनों को सशक्त बनाने के साथ ही एक समृद्ध, समावेशी और प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था की संस्थागत नींव रखते हैं।

(लेखक प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अंशकालिक सदस्य एवं वित्त के प्रोफेसर हैं)