विचार: पाकिस्तान से और बढ़ा खतरा, अमेरिका-चीन की शह पर मजबूत हो रहे जनरल मुनीर से रहना होगा सावधान
मुनीर भले ही ट्रंप की मिजाजपुर्सी कर अपनी कुर्सी को मजबूत बनाने में लगे हुए हों, लेकिन उनकी गद्दी की मजबूती चीनी रहमोकरम पर ही टिकी है। जब पाकिस्तान को चीन और अमेरिका जैसी शक्तियों की शह मिली हो, तब वैश्विक मंचों पर उसे अलग-थलग करना और कठिन है। पाकिस्तानी हर भिड़ंत में मुंह की खाकर भी उसी तरह जीत के दावे करेंगे, जैसे 1965 की हार के बाद अयूब खान ने, 1971 की हार के बाद याह्या खान और कारगिल के बाद मुशर्रफ करते रहे। असलियत समझ आने के बाद अयूब और याह्या को तो जनता ने उतार फेंका, पर मुशर्रफ 9/11 की घटना के कारण बच गए थे। शायद यही सोच कर मुनीर ने संविधान संशोधन कराया है और खुद को निरंकुश बना लिया है।
HighLights
मुनीर की कुर्सी चीनी रहमोकरम पर टिकी
अमेरिका-चीन की शह से खतरा बढ़ा
संविधान संशोधन से मुनीर बने निरंकुश
शिवकांत शर्मा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 11 नवंबर को इस्लामाबाद में हुए आत्मघाती बम धमाके की तो आतंकवादी हमला बता कर निंदा की, पर उससे एक दिन पहले दिल्ली में लाल किले के निकट आत्मघाती जिहादी बम धमाके को केवल धमाका बताकर संवेदना प्रकट कर दी। दिल्ली में हुए धमाके के तार पाकिस्तान के प्रतिबंधित जिहादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े थे। यकीन नहीं होता कि यह वही ट्रंप हैं जिन्होंने 2018 में लिखा था, ‘पिछले 15 वर्षों में अमेरिका ने पाकिस्तान को बेवकूफी में 33 अरब डालर की मदद दी, जिसके बदले झूठ और फरेब के सिवा कुछ नहीं पाया।’
इस बीच आपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल मुनीर ने न जाने कौन सी घुट्टी पिला दी कि ट्रंप के सुर ही बदल गए हैं। अब वे उनके चहेते बन गए हैं। इतने चहेते कि सारी परंपराओं को ताक पर रखकर उन्हें व्हाइट हाउस में दावत दी गई, महान नेता कहकर तारीफ की गई और तीन महीने में तीन मुलाकातें हुईं। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के नेता से अपने लिए ‘महान’ जैसे विशेषण सुनकर किसे गुमान नहीं होगा? उत्साहित होकर मुनीर सेनाप्रमुख से फील्ड मार्शल बन गए। भले ही भारत से देश और दुनिया के लोगों ने पाकिस्तान को सबक सिखाने के सुबूत मांगें हों, मगर जनरल मुनीर को न पाकिस्तानी जनता को कुछ दिखाना पड़ा न दुनिया को।
उधर ट्रंप बार-बार यही राग अलापते रहे कि लड़ाई उन्होंने रुकवाई थी और टैरिफ की धमकी देकर रुकवाई थी। भारत के मना करने पर भी वे बाज नहीं आए। ऊपर से ‘अमेरिका-चीन आर्थिक एवं सुरक्षा समीक्षा आयोग’ ने अपनी रिपोर्ट में दोतरफा बात कह दी। अमेरिकी कांग्रेस को दी रिपोर्ट में एक तरफ तो कहा कि चीन ने फर्जी इंटरनेट मीडिया अकाउंट और एआइ तस्वीरों के सहारे अपने जे-35 लड़ाकू विमानों को फ्रांसीसी राफेल विमानों से बेहतर दिखाने के लिए ‘दुष्प्रचार अभियान’ चलाया। दूसरी तरफ कहा कि लड़ाई में पाकिस्तान का पलड़ा भारी था, क्योंकि चीन इस भिड़ंत का इस्तेमाल अपने हथियारों की क्षमताओं को परखने और उनका प्रचार करने के लिए कर रहा था।
पाकिस्तान की कठपुतली सरकार के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के लिए इतना काफी था। उन्होंने गुलाम कश्मीर में एक कार्यक्रम के दौरान दावा किया कि अमेरिकी कांग्रेस में पेश रिपोर्ट पाकिस्तान की जीत को प्रमाणित करती है। भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस रिपोर्ट के विरोध-खंडन की मांग कर रही है, मगर भारत सरकार चुप है, क्योंकि भारत और अमेरिका के संबंध इस समय नाजुक दौर से गुजर रहे हैं। क्रिप्टोकरेंसी व्यापार के पारिवारिक सौदे और दुर्लभ खनिजों, तेल और अरब सागर में एक बंदरगाह के प्रस्तावों से मुनीर के मुरीद हुए ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ तो टैरिफ की दरें कम कर दी हैं, परंतु भारत की स्वायत्तता, स्वाभिमान और राष्ट्रीय हित अभी भारत से जुड़ी उनकी हसरतों में आड़े आ रहे हैं। भारत को अपने व्यापार हितों के साथ उन सभी पहलुओं पर गंभीरता से सोचना और रणनीति बनानी है, जिन्हें ट्रंप अपनी विशुद्ध लेनदेन वाली नीति के कारण अनदेखा कर रहे हैं। जैसे जलवायु परिवर्तन की मार, विकासशील देशों के व्यापारिक और कूटनीतिक हित, नियमबद्ध वैश्विक व्यवस्था की बहाली और हिंद-प्रशांत की क्षेत्रीय सुरक्षा। इसलिए पीएम मोदी ने जी-20 से ट्रंप की नाराजगी को जानते हुए भी जोहानिसबर्ग शिखर सम्मेलन में शामिल होकर सही किया।
भारत इस समय पाकिस्तान में सत्ता के केंद्रीकरण और जिहादी हिंसा के बदलते स्वरूप की अनदेखी नहीं कर सकता। जनरल परवेज मुशर्रफ ने खुद पर जानलेवा हमलों की कोशिश के बाद इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के दो मदरसों पर छापे डलवाए और माना था कि मदरसे जिहादी आतंक की फैक्ट्रियां बन चुके हैं। उन्होंने उन्हें सुधारने की कोशिश भी कीं, पर सफल नहीं हो पाए। तालिबान, तहरीके तालिबान पाकिस्तान, जैश, लश्कर आदि सभी जिहादी आतंकी संगठन मदरसों की ही देन हैं। पाकिस्तान में दर्जनों ऐसे मदरसे हैं, जहां जिहादी आतंक का प्रशिक्षण दिया जाता है। दिवालिया आर्थिक हालात की वजह से पाकिस्तान की निर्भरता विदेशी कर्ज पर बढ़ गई है और ऋणदाता एजेंसियां जिहादी आतंक की फंडिंग बंद करने की मांग करने लगी हैं। इसलिए जिहादी नेटवर्कों ने अब स्कूलों और कालेज के छात्रों और पेशेवरों को अपने रंग में रंगना शुरू किया है। चांदनी चौक का धमाका करने वाला डाक्टरों का गिरोह इसी रणनीति का हिस्सा था।
यह जिहादी रणनीति भारत की सुरक्षा और जांच एजेंसियों के लिए नई चुनौतियां खड़ी करती है। इस कड़ी में पहली चुनौती भारत के अपने हजारों मदरसों को जिहादी मानसिकता के अड्डे बनने से रोकना है। राजनीतिक खेमेबाजी के चलते यह काम आसान नहीं होगा। अल फलाह जैसी मुख्यधारा की शिक्षा और गैर-शिक्षण संस्थाओं में इसे रोक पाना और भी कठिन होगा। दूसरी चुनौती जिहादी घुसपैठियों को समय रहते पकड़ना और उनके प्रायोजकों पर उत्तरोत्तर बड़ी चोट करना है। भारत ने आपरेशन सिंदूर द्वारा इस नीति का एलान तो कर दिया है, पर क्या उसे निभा पाना संभव होगा? निभा भी लिया तो क्या जिहादी और उनके प्रायोजक बाज आ जाएंगे? अलकायदा, आइएस, हिजबुल्ला और हमास जैसे जिहादी संगठन और उनके नेता मिटने को मिट गए पर बाज कहां आए? पाकिस्तान और उसके जिहादी भी उसी सोच के हैं।
मुनीर भले ही ट्रंप की मिजाजपुर्सी कर अपनी कुर्सी को मजबूत बनाने में लगे हुए हों, लेकिन उनकी गद्दी की मजबूती चीनी रहमोकरम पर ही टिकी है। जब पाकिस्तान को चीन और अमेरिका जैसी शक्तियों की शह मिली हो, तब वैश्विक मंचों पर उसे अलग-थलग करना और कठिन है। पाकिस्तानी हर भिड़ंत में मुंह की खाकर भी उसी तरह जीत के दावे करेंगे, जैसे 1965 की हार के बाद अयूब खान ने, 1971 की हार के बाद याह्या खान और कारगिल के बाद मुशर्रफ करते रहे। असलियत समझ आने के बाद अयूब और याह्या को तो जनता ने उतार फेंका, पर मुशर्रफ 9/11 की घटना के कारण बच गए थे। शायद यही सोच कर मुनीर ने संविधान संशोधन कराया है और खुद को निरंकुश बना लिया है।
(लेखक बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक हैं)













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