संजय गुप्त। साइबर अपराध की बढ़ती घटनाएं चिंताजनक हैं। करीब-करीब हर दिन लोग साइबर ठगी के शिकार होकर अपना पैसा गंवा रहे हैं। एक समय पहले जैसे डकैती आम बात थी, वैसे ही अब साइबर ठगी। साइबर ठग नित-नए तरीकों से लोगों को ठग रहे हैं। पहले वे धोखे से लोगों की क्रेडिट, डेबिट कार्ड संबंधी जानकारी लेकर ठगी करते थे, फिर तरह-तरह का लालच देकर ठगने लगे। अब वे डिजिटल अरेस्ट की धमकी देकर लोगों को ठग रहे हैं। डिजिटल अरेस्ट की फर्जी धमकी से भयभीत होकर लोग साइबर ठगों के चंगुल में कहीं आसानी से फंस जा रहे हैं। इनमें अच्छे-खासे पढ़े-लिखे लोग भी हैं। अब तो नौकरशाह, उद्योगपति भी उनके चंगुल में फंसने लगे हैं। कई लोग ऐसे हैं, जो डिजिटल अरेस्ट की धमकी देने वाले ठगों के खातों में करोड़ों रुपये ट्रांसफर कर चुके हैं।

साइबर ठगी के मामले अकेले भारत में ही नहीं, लगभग हर देश की पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों के लिए चुनौती बन कर सामने आ रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार 2025 में साइबर ठगी से होने वाली आर्थिक क्षति 10 लाख करोड़ डालर से भी अधिक हो सकती है। यह आंकड़ा सुनकर किसी के भी पैरों तले जमीन खिसक सकती है। यह आंकड़ा यही बताता है कि साइबर ठग किस तरह बेलगाम होते जा रहे हैं। साइबर ठगी के मामलों में पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती ठगों की पहचान करना और उन्हें पकड़ना और फिर उनसे ठगी की रकम वसूलना होता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि साइबर ठग अक्सर विदेश में रहकर ठगी करते हैं और वह भी मोबाइल फोन, ईमेल आदि के जरिये। साइबर ठगी के बढ़ते मामलों के साथ यह भी दिख रहा है कि लोगों से ठगी के जरिये हासिल की गई राशि बढ़ती जा रही है। पिछले दिनों दिल्ली के एक सेवानिवृत्त इंजीनियर से दस करोड़ रुपये डिजिटल अरेस्ट का भय दिखाकर हड़प लिए गए। इसके पहले वर्धमान ग्रुप के प्रमुख एसपी ओसवाल से सात करोड़ रुपये ठग लिए गए थे। साइबर ठगों ने उन्हें फर्जी सीबीआइ अधिकारी बनकर ठगा और उनके कथित मामले की सुप्रीम कोर्ट में फर्जी सुनवाई तक का नाटक किया। पांच-दस लाख रुपये की ठगी के मामले तो बहुत आम हो गए हैं।

भारत सरकार ने बार-बार कहा है कि उसकी कोई एजेंसी डिजिटल अरेस्ट जैसी कार्रवाई नहीं करती। खुद प्रधानमंत्री मन की बात कार्यक्रम में यह कह चुके हैं कि डिजिटल अरेस्ट की धमकी देने वालों से सावधान रहें। इसके बाद खबर आई कि विभिन्न एजेंसियां साइबर ठगों के खिलाफ सक्रिय हो रही हैं, लेकिन इसका कहीं कोई सकारात्मक असर नहीं दिख रहा है। साइबर ठग पहले की ही तरह बेलगाम हैं। समझना कठिन है कि जब साइबर ठगी के मामले इतने बढ़ रहे हैं, तब सरकार की तरफ से नागरिकों को जागरूक करने के काम में शिथिलता क्यों बरती जा रही है? सरकार को चाहिए कि वह यह बार-बार बताए कि टैक्स की वसूली करने वाले आयकर, जीएसटी जैसे विभागों का डिजिटल अरेस्ट से कोई लेना-देना नहीं। इसी तरह यह भी प्रचारित किया जाना चाहिए कि सीबीआइ, ईडी, कस्टम, नारकोटिक्स जैसे विभाग न तो डिजिटल अरेस्ट जैसी कार्रवाई करते हैं और न ही किसी मामले में किसी व्यक्ति को अपना पैसा किसी अन्य के खाते में जमा कराने को कहते हैं। साइबर ठग लोगों को धमकाने के लिए कभी फोन कर यह कहते हैं कि उनके नाम आए या उनके नाम से भेजे गए पार्सल में ड्रग्स मिला है। कभी यह कहते हैं कि उनके खाते से अवैध लेन-देन हो रहा है और कभी यह कि आपके बेटे-बेटी को अमुक-अमुक अपराध में हिरासत में लिया गया है। अनेक मामलों में वे वाट्सएप के जरिये वीडियो काल करते हैं। वे लोगों को डिजिटली अरेस्ट कर लिए जाने का भय दिखाते हैं। वे मैसेज के जरिये कोई लिंक भेजकर उसे क्लिक करने को भी कहते हैं, ताकि लिंक पर क्लिक करने वाले का मोबाइल फोन हैक कर सकें।

साइबर ठगी से बचने के लिए लोगों को केवल लालच में आने से ही नहीं बचना होगा, बल्कि सीबीआइ, ईडी, कस्टम, नारकोटिक्स, जीएसटी आदि विभागों के फर्जी अधिकारी बनकर फोन करने वालों से भी सावधान रहना होगा। लोग इन अधिकारियों की आड़ में साइबर ठगों के फोन से घबरा जाते हैं तो इसलिए भी कि इन विभागों की छवि अच्छी नहीं। आम धारणा है कि इन विभागों की किसी कार्रवाई के दायरे में आने का मतलब है उससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाना और वर्षों अदालतों के चक्कर काटते रहना। लोग उन समाचारों से अवगत ही हैं कि सीबीआइ, ईडी आदि की कार्रवाई के दायरे में आने वाले किस तरह लंबे समय तक जेल में सड़ते रहते हैं और उन्हें अदालतों से भी राहत नहीं मिल पाती। साफ है कि लोगों को यह भरोसा नहीं कि यदि वे किसी मामले में गलत फंसा दिए गए तो अदालतें भी उन्हें राहत नहीं दे सकेंगी। सरकार को यह समझना होगा कि उसे अपनी एजेंसियों की छवि में सुधार के लिए सक्रिय होना चाहिए और जनता में यह भरोसा पैदा करना चाहिए कि कोई भी सरकारी एजेंसी किसी को अनावश्यक रूप से परेशान नहीं कर सकती। उसे टैक्स वसूली और उसके निर्धारण की प्रक्रिया भी पारदर्शी बनानी होगी। अभी टैक्स वसूल करने वाली एजेंसियों के बारे में यह धारणा है कि वे किसी को भी मनमाने तरीके से अपने चंगुल में ले सकती हैं और फिर लंबे समय तक परेशान करती रह सकती हैं। साइबर ठग सरकारी एजेंसियों की इस छवि का भी लाभ उठा रहे हैं।

सरकारों के लिए यह आवश्यक है कि वह लोगों को जागरूक करने के साथ पुलिस और उन एजेंसियों को सक्षम भी बनाए, जिनके कंधों पर साइबर ठगी से निपटने की जिम्मेदारी है। अभी तो ये एजेंसियां साइबर ठगों के सामने निष्प्रभावी सी दिखती हैं। हमारी पुलिस साइबर ठगों तक मुश्किल से पहुंच पाती है। इसी कारण बहुत कम मामलों में ठगी गई राशि पीड़ित व्यक्ति को वापस मिल पाती है। अब जब साइबर ठगी कहीं बड़े पैमाने पर हो रही है और नए-नए तरीकों से हो रही है, तब फिर सरकार को चाहिए कि साइबर अपराध से निपटने वाले पुलिस तंत्र को तकनीकी तौर पर दक्ष बनाए। इस तंत्र को साइबर ठगों से भी बेहतर तकनीक से लैस किया जाना समय की मांग है।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]