मनिष दाभाडे। अमेरिका के नवनियुक्त राजदूत और दक्षिण एवं मध्य एशियाई मामलों के विशेष दूत सर्जियो गोर ने पहले ही दिन भारत के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश सचिव विक्रम मिस्री से उनकी बैठकें संकेत हैं कि वाशिंगटन भारत के साथ अपने रिश्ते को नई गति देने के मूड में है। इस सौहार्दपूर्ण शुरुआत के पीछे गोर के लिए चुनौतियों का एक जटिल जाल बिछा हुआ है।

प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मित्रता ने जहां संबंधों में नई ऊर्जा डाली है, वहीं दोनों देशों के बीच व्यापारिक मतभेद, तकनीकी साझेदारी की जटिलताएं और दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को लेकर चिंताएं अब भी बनी हुई हैं। गोर के लिए सबसे बड़ी कसौटी यह होगी कि वे व्यक्तिगत निकटता को नीति में बदलें और इन विरोधाभासों को समेटते हुए संबंधों को नई दिशा दें।

गोर का भारत में राजदूत के साथ-साथ दक्षिण एवं मध्य एशियाई मामलों का विशेष दूत भी होना एक राजनीतिक संकेत है कि अमेरिका भारत और उसके पड़ोसी क्षेत्र को अब सीधे राष्ट्रपति की प्राथमिकता के रूप में देख रहा है, परंतु यह दोहरी भूमिका भारत के लिए दुविधा का विषय भी है। नई दिल्ली लंबे समय से यह सुनिश्चित करना चाहती है कि उसे दक्षिण एशिया के पारंपरिक ‘भारत-पाकिस्तान’ ढांचे में न बांधा जाए। गोर के लिए यह चुनौती होगी कि वे भारत की वैश्विक भूमिका को बनाए रखते हुए अपने क्षेत्रीय दायित्वों का निर्वाह करें।

उनकी सबसे कठिन परीक्षा आर्थिक मोर्चे पर होगी। ट्रंप प्रशासन की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के तहत भारत पर लगाए गए ऊंचे टैरिफ ने दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ा दिया है। अमेरिका का दावा है कि भारत के ऊंचे आयात शुल्क और रूस से तेल खरीद जैसी नीतियां ‘असंतुलित’ हैं। इसके जवाब में भारत ने अपने हितों की रक्षा पर जोर दिया है। संभावित व्यापार समझौता महीनों से ठप पड़ा है। ऐसे में गोर को इस प्रक्रिया को पुनर्जीवित करना होगा, वह भी बिना किसी घरेलू राजनीतिक विवाद के।

प्रौद्योगिकी साझेदारी भी उनके एजेंडे का एक संवेदनशील बिंदु है। भारत रक्षा और नवाचार क्षेत्र में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण चाहता है, जबकि अमेरिका अपनी बौद्धिक संपदा और सुरक्षा चिंताओं को लेकर सतर्क है। सेमीकंडक्टर, एआइ और डाटा सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में सहयोग के अवसर तो हैं, पर नीतिगत स्पष्टता की कमी दोनों पक्षों को सतर्क रखती है। गोर का कार्य यह साबित करना होगा कि वाशिंगटन की तकनीकी नीति चीन को लेकर है, भारत को लेकर नहीं। रक्षा सहयोग के क्षेत्र में गोर को एक सकारात्मक आधार मिला है।

दोनों देशों के बीच हुए कोमकासा और बीईसीए जैसे समझौते सामरिक साझेदारी के नए युग की नींव बन चुके हैं। फिर भी भारत अमेरिका से अधिक तकनीकी हस्तांतरण और स्थानीय उत्पादन चाहता है, जबकि वाशिंगटन रूस से भारत के सैन्य संबंधों पर दबाव डालता है। गोर को इस संतुलन को साधना होगा, ताकि भारत की रक्षा स्वायत्तता प्रभावित न हो और अमेरिका की रणनीतिक अपेक्षाएं भी पूरी हों।

दक्षिण एशिया के परिप्रेक्ष्य में चुनौती और गहरी है। ट्रंप के पाकिस्तान के प्रति हालिया रुझान-इस्लामाबाद के नेतृत्व से मुलाकात और उसके ऊर्जा क्षेत्र में अमेरिकी निवेश के संकेत दिल्ली के लिए असहज हैं। भारत को यह आशंका है कि कहीं वाशिंगटन पुनः ‘री-हाइफनेशन’ यानी भारत-पाकिस्तान समानांतर नीति की ओर न लौट जाए। गोर की दोहरी जिम्मेदारी-दिल्ली और इस्लामाबाद, दोनों से संपर्क इस चिंता को और गहरा करती है।

उन्हें भारत को यह विश्वास दिलाना होगा कि ट्रंप का पाकिस्तान प्रेम रणनीतिक गणित का हिस्सा है, न कि नीति परिवर्तन का। महत्वपूर्ण खनिजों पर गोर और मोदी के बीच चर्चा यह दिखाती है कि अमेरिका इस क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाना चाहता है। दोनों देश चीन पर निर्भरता कम करने और ‘फ्रेंड-शोरिंग’ के माध्यम से वैकल्पिक आपूर्ति शृंखला बनाने के पक्षधर हैं, पर भारत की खनन नीतियां अभी भी जटिल हैं।

यदि गोर यहां ठोस निवेश या संयुक्त परियोजनाएं आगे बढ़ा पाते हैं तो यह उनके कार्यकाल की एक उल्लेखनीय उपलब्धि होगी। आव्रजन नीति और एच-1बी वीजा व्यवस्था पर भी उन्हें सावधानी से चलना होगा। भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिका की कड़ी वीजा नीति चिंता का विषय रही है। गोर को इन घरेलू राजनीतिक बाधाओं को समझाते हुए भी भरोसे का माहौल बनाना होगा।

गोर के पास एक बड़ा लाभ यह है कि वे सीधे राष्ट्रपति तक पहुंच रखते हैं, पर यही उनकी सबसे बड़ी चुनौती भी है। यदि वे ट्रंप की व्यक्तिगत सद्भावना को ठोस नीतिगत परिणामों में बदलने में सफल रहते हैं तो न केवल संबंधों को पुनर्जीवित करेंगे, बल्कि उन्हें नई ऊंचाई भी देंगे। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में भारत और अमेरिका का सहयोग अनिवार्य है।

चीन की आक्रामकता, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और आपूर्ति शृंखला के पुनर्संतुलन के युग में दोनों देशों की साझेदारी ही स्थिरता की गारंटी है। गोर के आगमन से यह उम्मीद बंधती है कि संवाद की रफ्तार फिर से बढ़ेगी, रक्षा-प्रौद्योगिकी और व्यापार के क्षेत्रों में प्रगति होगी और असहमतियों के बावजूद सहयोग का दायरा विस्तृत होगा।

(लेखक द इंडियन फ्यूचर्स थिंक टैंक के संस्थापक और जेएनयू में एसोसिएट प्रोफेसर हैं)