जागरण संपादकीय: जानलेवा लापरवाही, गोवा के एक नाइट क्लब में आग लगने से 25 लोगों की मौत
इस तरह की घटनाएं यही रेखांकित करती हैं कि विकसित बनने के आकांक्षी भारत में नियम-कानूनों की हर स्तर पर उपेक्षा होती है और इस देश में जिम्मेदारी के साथ कोई काम मुश्किल से ही किया जाता है।
HighLights
गोवा में नाइट क्लब में आग, 25 की मौत
नियमों की अनदेखी, सुरक्षा उपायों का अभाव
लापरवाही से हुई जानलेवा त्रासदी
गोवा के एक नाइट क्लब में आग लगने से 25 लोगों की मौत अपने देश में सार्वजनिक सुरक्षा के प्रति बरती जाने वाली उस लापरवाही को ही बयान करती है, जो बार-बार देखने को मिलती है। इस तरह के हादसे रह-रहकर होते ही रहते हैं, लेकिन कहीं कोई सबक नहीं सीखा जा रहा है। गोवा का जो नाइट क्लब आग की चपेट में आया, वह नियमों की अनदेखी करके तो चलाया ही जा रहा था, उसमें आग से बचाव के उपाय भी नहीं किए गए थे।
रही-सही कसर इससे पूरी हो गई कि नाइट क्लब में आने और जाने का रास्ता बेहद संकरा था। आग की चपेट में आने वालों की संख्या इसलिए अधिक बढ़ गई, क्योंकि बचने के लिए उन्होंने जिस रास्ते को सुरक्षित समझा, वहां पहले से ही लोग फंसे हुए थे। इससे बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि इस हृदयविदारक घटना के बाद उच्चस्तरीय जांच की बात की जा रही है और दोषी लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का वादा किया जा रहा है। ऐसे हर हादसे के बाद ऐसे ही वादे किए जाते हैं, लेकिन कुछ समय बाद फिर कहीं न कहीं उन्हीं कारणों से कोई भयावह दुर्घटना घट जाती है, जिन कारणों से पहले घट चुकी होती है।
कायदे से तो इस नाइट क्लब को खोले जाने की अनुमति ही नहीं दी जानी चाहिए थी और यदि दी भी गई तो सुरक्षा के पूरे उपाय सुनिश्चित किए जाने चाहिए थे। दुर्भाग्य से ऐसा नहीं किया गया। स्पष्ट है कि यह नाइट क्लब अवैध तरीके से उन्हीं विभागों की अनदेखी अथवा मिलीभगत से चल रहा था, जिन पर नियम-कानूनों के पालन का दायित्व था।
होना तो यह चाहिए कि जिन विभागों की अनदेखी-उपेक्षा के चलते नाइट क्लब चल रहा था, सबसे पहले उनके संबंधित अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए। गोवा की यह घटना यह भी बता रही है कि ऐसे स्थलों में सुरक्षा व्यवस्था की जो नियमित जांच-पड़ताल होनी चाहिए, वह भी नहीं की गई। यह पहली बार नहीं है जब किसी सार्वजनिक स्थल पर आग लगी हो और इतने लोगों की जान गई हो।
इस तरह की घटनाएं लगातार होती रहती हैं। ऐसी घटनाओं में बड़ी संख्या में लोग जान गंवाते हैं। जब ऐसा होता है तो कठोर कार्रवाई करने की घोषणा होती है और शोक संवेदनाओं का तांता लग जाता है, लेकिन स्थितियों को सुधारने के बजाय मुआवजे की घोषणा करके कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाती है। हमारे नीति-नियंताओं को यह समझना होगा कि इस तरह की घटनाएं केवल जान-माल को ही क्षति नहीं पहुंचातीं, बल्कि देश की बदनामी भी कराती हैं।
इस तरह की घटनाएं यही रेखांकित करती हैं कि विकसित बनने के आकांक्षी भारत में नियम-कानूनों की हर स्तर पर उपेक्षा होती है और इस देश में जिम्मेदारी के साथ कोई काम मुश्किल से ही किया जाता है।













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