जागरण संपादकीय: एसआईआर का दूसरा दौर, 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का चयन
इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने संकीर्ण राजनीतिक कारणों से एसआईआर के खिलाफ विरोध का झंडा बुलंद कर रखा है और वह भी तब, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया को उचित पाया है। क्या यह विचित्र नहीं कि विपक्षी दल मतदाता सूचियों में गड़बड़ियों की शिकायत भी करते हैं और उनके पुनरीक्षण का विरोध भी?
HighLights
चुनाव आयोग का मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान शुरू
बिहार में पहला चरण, 12 राज्यों का चयन
अंततः चुनाव आयोग ने देश भर में मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण यानी एसआईआर की प्रक्रिया शुरू कर दी। पहले चरण में बिहार में यह काम किया गया था। दूसरे चरण के लिए जिन 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का चयन किया गया है, उनमें से कई में अगले एक वर्ष में चुनाव होने हैं।
अच्छा होता कि यह काम एक निश्चित अंतराल में होता रहता। इसके पहले एसआईआर करीब दो दशक पहले किया गया था। कम से कम अब तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि एसआईआर में इतना अंतराल न आने पाए, क्योंकि अब लाखों लोग नौकरी-पेशे के चलते अन्यत्र चले जाते हैं। इनमें से अधिकांश वहीं बस जाते हैं।
इसके अतिरिक्त यह देखने में आता है कि मृतकों के नाम तो मतदाता सूची में बने रहते हैं, लेकिन नए लोगों के नाम उसमें दर्ज नहीं हो पाते। जितना जरूरी यह है कि एक भी अपात्र व्यक्ति मतदाता सूची में स्थान न पाने पाए, उतना ही यह भी कि पात्र व्यक्ति मतदान से वंचित न होने पाए।
मतदाता सूचियों को दुरुस्त करना चुनाव आयोग का संवैधानिक अधिकार ही नहीं, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की अनिवार्य आवश्यकता भी है। विडंबना यह है कि कुछ दलों को इस आवश्यकता की पूर्ति किया जाना रास नहीं आ रहा है।
उन्होंने बिहार में एसआईआर को लेकर आसमान सिर पर उठाया और वोट चोरी के जुमले के सहारे सड़कों पर उतरने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया। यदि उनकी दाल न सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गली और न ही बिहार की जनता के बीच तो इसीलिए कि वे कोरा दुष्प्रचार कर रहे थे।
यदि चुनाव का सामना कर रहे बिहार में वोट चोरी का जुमला सुनाई नहीं दे रहा है तो इसी कारण कि यहां की जनता ने यह समझा कि चुनाव आयोग ने जो किया, वह समय की मांग थी। इसे ही एसआईआर की प्रक्रिया से दो-चार होने जा रहे राज्यों की जनता को भी समझना होगा और इनमें भी पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु के लोगों को विशेष रूप से।
इन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने संकीर्ण राजनीतिक कारणों से एसआईआर के खिलाफ विरोध का झंडा बुलंद कर रखा है और वह भी तब, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रक्रिया को उचित पाया है। क्या यह विचित्र नहीं कि विपक्षी दल मतदाता सूचियों में गड़बड़ियों की शिकायत भी करते हैं और उनके पुनरीक्षण का विरोध भी?
हालांकि उनके दुष्प्रचार की पोल खुल चुकी है, फिर भी चुनाव आयोग को इसके लिए तैयार रहना होगा कि विपक्ष शासित राज्य एसआईआर की प्रक्रिया का विरोध कर सकते हैं। उसे इसके प्रति सतर्क रहना होगा कि मतदाता सूचियों को ठीक करने की प्रक्रिया में किसी तरह की गलती न होने पाए, क्योंकि विपक्षी दल छोटी-छोटी बातों को तूल देकर इस संवैधानिक प्रक्रिया को श्रीहीन करने की चेष्टा कर सकते हैं।













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