अभी मानसून की विदाई ही हुई है, लेकिन पंजाब में फसलों के अवशेष यानी पराली जलनी शुरू हो गई। यह इसलिए अनपेक्षित है, क्योंकि आम तौर पर पंजाब में अक्टूबर के पहले सप्ताह से पराली जलाने का सिलसिला शुरू होता है। यह ठीक है कि पंजाब में पराली जलाए जाने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और उसने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से स्पष्टीकरण भी मांग लिया, लेकिन इसके आसार कम ही हैं कि उसे कोई संतोषजनक जवाब मिल सकेगा और पंजाब में पराली जलाने के सिलसिले को थामा जा सकेगा।

पंजाब में पराली जलाए जाने से यही पता चलता है कि अभी तक वहां ऐसे प्रबंध नहीं किए जा सके हैं कि किसानों को फसलों के अवशेष न जलाने पड़ें और यदि वे ऐसा करें तो उन्हें इससे रोका जा सके। यह निराशाजनक है कि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि में पराली को जलाने से रोकने के लिए पिछले कई वर्षों से तमाम प्रयत्न किए जा रहे हैं, लेकिन वे प्रभावी नहीं सिद्ध हो पा रहे हैं। चिंताजनक यह है कि इन राज्यों की देखादेखी अन्य राज्यों में भी पराली जलाई जाने लगी है। ऐसा इसीलिए हो रहा है, क्योंकि किसानों के समक्ष ऐसे उपाय पेश नहीं किए जा सके हैं, जिससे उन्हें पराली न जलानी पड़े।

चूंकि पंजाब, हरियाणा आदि में पराली जलाए जाने से उठने वाला धुआं देश की राजधानी में वायु की गुणवत्ता को कहीं अधिक प्रभावित करता है, इसलिए केंद्र सरकार भी सक्रियता दिखाती है और सुप्रीम कोर्ट भी, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सर्दियों में दिल्ली समेत उत्तर भारत का एक बड़ा हिस्सा वायु प्रदूषण की चपेट में आ जाता है और वह लोगों के स्वास्थ्य के लिए संकट पैदा करता है। हैरानी नहीं कि इस बार भी ऐसा ही हो, क्योंकि लगता नहीं कि सभी राज्यों ने ऐसे प्रबंध कर लिए हैं, जिससे पराली न जले।

यह ध्यान रहे कि सर्दियों में वायु की गुणवत्ता केवल पराली जलाए जाने से ही प्रभावित नहीं होती। इसके अतिरिक्त वह सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल, वाहनों के उत्सर्जन और कूड़ा-करकट जलाने से भी प्रभावित होती है। अच्छा होगा कि प्रदूषण रोधी एजेंसियां पराली को जलाए जाने से रोकने के अतिरिक्त वायु प्रदूषण के अन्य कारणों का भी निवारण करें। निःसंदेह सुप्रीम कोर्ट को भी इस ओर ध्यान देना होगा। उसे दिल्ली के साथ शेष देश के पर्यावरण की भी चिंता करनी होगी। इस क्रम में यह भी समझना होगा कि यदि वायु प्रदूषण की चिंता केवल सर्दियां आने पर ही की जाएगी तो अपेक्षित नतीजे नहीं मिल सकते। वायु प्रदूषण से निपटने की तैयारी वर्ष भर करनी होगी, क्योंकि अब बरसात को छोड़कर देश के बड़े हिस्से वायु की खराब गुणवत्ता से जूझते रहते हैं। वायु प्रदूषण केवल जनजीवन पर ही बुरा असर नहीं डालता, बल्कि वह देश की छवि भी मलिन करता है।