बांग्लादेश में चीन-पाकिस्तान का दखल और कट्टरपंथ बढ़ने की आशंका
स्वाधीनता के समय से ही भारत ने हमेशा बड़े भाई की भूमिका निभाई लेकिन मौजूदा हालात में भारत-बांग्लादेश के संबंध यथावत रहेंगे यह तो आने वाले वक्त बताएगा। बांग्लादेश में अस्थिरता की वजह से भारत की सुरक्षा के लिए किस तरह की चुनौती बनेगी यह यक्ष प्रश्न है। सवाल यह भी है कि क्या चीन-पाकिस्तान इस मौके का लाभ उठाकर भारत के खिलाफ खेमेबंदी को मजबूत करेंगे?
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। स्वाधीनता के बाद से ही बांग्लादेश के प्रारंभिक वर्ष राजनीतिक अस्थिरता से भरे थे। देश में 13 शासक आए और 4 सैन्य बगावतें हुई। पाकिस्तान की तरह बांग्लादेश में भी उथल-पुथल का दौर चलता रहा, लेकिन हाल के वर्षों में उसने वैभव, संपन्नता और विश्व में एक नए उभरते राष्ट्र के तौर पर भी पहचान बनाई। हालांकि अपनी इस समृद्धि को वह लंबे समय तक सहेज कर नहीं रख सका। लगातार हिचकोले खाती सत्ता, नेताओं और जनता के बीच अंतर्द्वंद्व और आर्थिक समृद्धि के बुलबुले ने बांग्लादेश को कभी ‘आमार सोनार बांग्ला’ बनने नहीं दिया। हाल के प्रदर्शनों ने वैश्विक पटल पर बांग्लादेश की अस्थिर राष्ट्र की छवि को उकेर दिया। इसने न केवल इसे आर्थिक तौर पर कमजोर किया बल्कि लोकतांत्रिक तौर पर भी अस्थिर मुल्क का ठप्पा लगाया। बीते कुछ दशकों में भारत और बांग्लादेश की दोस्ती ने नित नए आयाम गढ़े। स्वाधीनता के समय से ही भारत ने हमेशा बड़े भाई की भूमिका निभाई जो हर आड़े वक्त पर हमेशा साथ खड़ा और सलाह देता दिखा, लेकिन मौजूदा हालात में भारत-बांग्लादेश के संबंध यथावत रहेंगे या उनकी गर्मजोशी में कमी आएगी, यह तो आने वाले वक्त बताएगा। बांग्लादेश में अस्थिरता की वजह से भारत की सुरक्षा के लिए किस तरह की चुनौती बनेगी, यह यक्ष प्रश्न है। सवाल यह भी है कि क्या चीन-पाकिस्तान इस मौके का लाभ उठाकर भारत के खिलाफ खेमेबंदी को मजबूत करेंगे? ऐसे हालात में भारत को संतुलन स्थापित करने के लिए किस तरह की रणनीति बनाने की आवश्यकता है, जो वैश्विक स्तर पर उसकी लगातार बढ़ती स्थिति को और मजबूत करे।