एस.के. सिंह, नई दिल्ली। रूस के कजान में आयोजित ब्रिक्स देशों के 16वें शिखर सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण बातें देखने को मिलीं। आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए ये देश कुछ नए प्लेटफॉर्म बनाने और पुराने को मजबूत करने पर सहमत हुए हैं। ये नया क्रॉस बॉर्डर पेमेंट सिस्टम और ग्रेन एक्सचेंज बनाने पर राजी हुए हैं, जो एक तरह से पश्चिमी देशों को चुनौती है। इसी तरह, 2015 में बने न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) के कामकाज का दायरा बढ़ाया जाएगा। आईएमएफ और डब्लूटीओ जैसे संस्थानों के महत्व को स्वीकार तो किया गया है, लेकिन उनमें विकासशील जगत का प्रतिनिधित्व बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है। दरअसल, देखा जाए तो ब्रिक्स विश्व राजनीति में एक प्रभावशाली ब्लॉक के रूप में उभर रहा है। मूल रूप से आर्थिक संगठन होने के बावजूद इसके घोषणापत्र में आतंकवाद से लेकर युद्ध तक, हर तरह के मुद्दों को जगह दी गई है। भारत के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि चीन के साथ संबंधों में तनाव कम करना कही जा सकती है। हालांकि यह ब्रिक्स सम्मेलन का हिस्सा नहीं था, लेकिन पांच साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का मिलना और सीमा विवाद सुलझाने पर सहमत होना महत्वपूर्ण है। इस पर पूरी दुनिया की नजर थी।

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