जागरण संपादकीय: मोदी-ट्रंप की वार्ता, दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता होने के आसार
भारत को उन्हें उनकी ही भाषा में जवाब देने के स्थान पर कूटनीतिक कौशल का सहारा लेकर अपने हितों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। भारत की पहली प्राथमिकता यही होनी चाहिए कि उसके अनुकूल अमेरिका से कोई व्यापार समझौता हो जाए। एक बार ऐसा समझौता हो जाए तो संबंधों के पटरी पर आने में अधिक समय नहीं लगेगा, क्योंकि उसे भी भारत के सहयोग की आवश्यकता है।
HighLights
दीवाली के अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच शुभकामनाओं का आदान-प्रदान होने के साथ ही दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता होने के आसार बढ़ना एक शुभ संकेत है। माना जा रहा है कि दोनों देशों में अगले माह व्यापार समझौता हो सकता है। उसके पहले मलेशिया में आसियान शिखर सम्मेलन में दोनों नेताओं में भेंट भी हो सकती है।
व्यापार समझौता होने को लेकर आसार इसलिए बढ़ गए हैं, क्योंकि एक तो दोनों नेताओं ने वैश्विक सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता, आतंकवाद और रणनीतिक साझेदारी समेत व्यापार वार्ता पर भी बात की और दूसरे, अमेरिकी राष्ट्रपति अपने इस दावे से पीछे हटते दिखे कि भारत रूस से तेल खरीद बंद करने पर सहमत हो गया है। इसके बजाय उन्होंने यह कहा कि भारत रूस से अधिक तेल नहीं खरीदेगा। दोनों बातों में अंतर है। यह अंतर समझौते की संभावनाएं पैदा करने वाला है।
ट्रंप की बदली भाषा से यह संकेत मिलता है कि वे रूस से तेल खरीद के मामले में बीच का कोई रास्ता निकालने और भारत को रियायत देने के इच्छुक हैं। उन्हें ऐसा करना ही होगा, क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकता। भारत यह भी नहीं कर सकता कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो कुछ कहें, वह उसे आंख मूंदकर मान ले।
संप्रभु राष्ट्र भारत को अपने हितों की रक्षा करने और अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर चलने का उतना ही अधिकार है, जितना अमेरिका को। शायद ट्रंप को यह समझ आने लगा है कि भारत को उस तरह नहीं झुकाया जा सकता, जैसे उन्होंने कई देशों को झुकाया है। भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति के मनगढ़ंत दावों और बड़बोले बयानों का जवाब कूटनीतिक भाषा में देने की जो रणनीति अपनाई है, वही उनके अड़ियल रवैये से पार पाने का सही तरीका है।
भारत को उन्हें उनकी ही भाषा में जवाब देने के स्थान पर कूटनीतिक कौशल का सहारा लेकर अपने हितों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। भारत की पहली प्राथमिकता यही होनी चाहिए कि उसके अनुकूल अमेरिका से कोई व्यापार समझौता हो जाए। एक बार ऐसा समझौता हो जाए तो संबंधों के पटरी पर आने में अधिक समय नहीं लगेगा, क्योंकि उसे भी भारत के सहयोग की आवश्यकता है।
इसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि यदि अमेरिका के साथ शीघ्र व्यापार समझौता हमारी प्राथमिकता है तो अमेरिका को भी अपने अंतरराष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए हमारा साथ चाहिए। वास्तव में दोनों देशों के हित एक-दूसरे से संपर्क-सहयोग में ही जुड़े हैं। तथ्य यह भी है कि आज अमेरिका भारत की अनदेखी करने में समर्थ नहीं, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था सबसे तेजी से बढ़ने के साथ देश का अंतरराष्ट्रीय कद भी बढ़ा रही है।
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