जागरण संपादकीय: आलोकित हो हर मन, देश में उत्सव का वातावरण
देश में उत्सव का माहौल है और दीवाली सबसे बड़ा पर्व है। धनतेरस पर खरीदारी से आर्थिक गतिविधियों को बल मिला है। स्वदेशी उत्पादों पर जोर दिया जा रहा है और भारत को विकसित देश बनने का संकल्प पूरा करना है। दीवाली हमारी संस्कृति और विरासत का प्रतीक है, जो विश्व को भारतीयता से परिचित कराता है। यह पर्व नकारात्मकता को दूर कर सकारात्मकता का प्रकाश फैलाता है।
HighLights
- <p>दीवाली: आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा</p>
- <p>स्वदेशी उत्पादों पर विशेष जोर</p>
- <p>भारतीय संस्कृति और विरासत का पर्व</p>
पिछले कुछ दिनों से देश में उत्सव का जो वातावरण बना, वह अपने उत्कर्ष पर पहुंचकर प्रकाश पर्व के रूप में हमारे समक्ष है। दीवाली सबसे बड़ा पर्व है और इस नाते घरों से लेकर कार्यालय-कारखानों तक हर तरफ चहल-पहल दिखना और बाजारों में जमकर खरीदारी होना स्वाभाविक है। धनतेरस पर देश भर में जिस तरह बड़े पैमाने पर खरीदारी हुई, उसने यह दिखाया कि हमारे त्योहार किस तरह आर्थिक जीवन में प्राण फूंकते हैं। आज के इस युग में अर्थ की महत्ता कहीं अधिक बढ़ गई है। आर्थिक गतिविधियां देश विशेष की प्रगति का सूचक होती हैं।
जब आर्थिक गतिविधियों को बल मिलता है तो अर्थव्यवस्था गति पकड़ती है और उससे हर कोई लाभान्वित होता है। इस दीवाली के लिए स्वदेशी उत्पाद खरीदने पर विशेष बल दिया गया, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं। हमें और विशेष रूप से हमारे उद्योगपतियों को इस पर ध्यान देना होगा कि आने वाले समय में देशवासियों के समक्ष अधिक से अधिक स्वदेशी उत्पाद खरीदने के विकल्प हों।
इससे भी आगे बढ़कर यह हो कि उनके उत्पाद विश्व बाजार में अपनी छाप छोड़ने वाले हों। ऐसा तब होगा, जब उनकी गुणवत्ता विश्वस्तरीय होगी। आत्मनिर्भर भारत के लिए हमारे उद्यमियों को वैश्विक बाजार में धाक जमाने वाले गुणवत्तापूर्ण उत्पाद बनाने की चुनौती को स्वीकार करना होगा। ऐसा करके ही भारत को सच्चे अर्थों में विकसित देश बनाया जा सकता है। भारत को विकसित देश बनने के अपने संकल्प को पूरा करने के लिए इसलिए सतत प्रयत्न करने होंगे, क्योंकि इससे ही हर भारतीय के जीवन को सुखमय बनाया जा सकेगा।
दीवाली जैसे बड़े त्योहार हमें हमारी परंपराओं से भी जोड़ते हैं। प्रकाश पर्व बताता है कि हम किस पुरातन संस्कृति और विरासत के वारिस हैं। यह संस्कृति कितनी अक्षुण्ण है, इसका बखान करने के लिए दीवाली से उत्तम और कोई पर्व नहीं। इसीलिए दीवाली एक वैश्विक पर्व का रूप ले रहा है। यह केवल विश्व को भारत से ही नहीं, बल्कि भारतीयता से भी परिचित कराता है। दीवाली पर टिमटिमाते दीये और जगमग करतीं बिजली की झालरें हमें अपनी प्राचीन मान्यताओं के प्रति समर्पित रहने के साथ आधुनिकता का वरण करना सिखाती हैं।
परंपरा और आधुनिकता में सामंजस्य एवं संतुलन होना ही नहीं चाहिए, दिखना भी चाहिए। दीवाली जैसे पर्व एक नया वातावरण प्रदान करते हैं, जो जीवन की एकरसता को तोड़ता है और उल्लास एवं उमंग पैदा करता है। त्योहार वही, जो जन-जन में हंसी-खुशी और मिठास घोले। कामना करें कि इस प्रकाश पर्व पर नकारात्मकता-निराशा का अंधकार छंटे और सकारात्मकता-सद्भाव का प्रकाश इस तरह फैले, ताकि हर मन आलोकित हो और चहुंओर आशाओं के दीप जलें।
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