प्रधानमंत्री ने सेमीकान इंडिया कार्यक्रम में विश्व भर के निवेशकों को भारत आने का निमंत्रण देते हुए डिजाइन इन इंडिया की जो बात कही, वह मेक इन इंडिया का विस्तार ही है। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का उल्लेख किए बगैर यह भी कहा कि भारत आर्थिक स्वार्थ से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है। स्पष्ट है कि वे ट्रंप की मनमानी टैरिफ नीति की और संकेत कर रहे थे।

इसके पहले भी वे ट्रंप टैरिफ की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए स्वदेशी का आह्वान कर चुके हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पिछले लगभग पांच वर्षों और विशेष रूप से कोविड महामारी के बाद से स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की बातें हो रही हैं। जब स्वदेशी और आत्मनिर्भरता पर बल दिया जाता है तो कुछ उत्साही लोग और संगठन चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का अभियान चलाने लगते हैं।

इस सबके बीच तथ्य यह है कि न तो स्वदेशी अपनाने की दिशा में अपेक्षित ढंग से आगे बढ़ा जा पा रहा है और न ही देश को वास्तव में आत्मनिर्भर बनाने के लिए। आत्मनिर्भर बनने का लक्ष्य तभी पूरा होगा जब मेक इन इंडिया के साथ डिजाइन इन इंडिया के तहत जो पहल की जा रही है, वह कारगर साबित होगी।

इससे इन्कार नहीं कि मेक इन इंडिया पहल ने काफी कुछ प्रभाव दिखाया है और इसका प्रमाण यह है कि आज भारत में बड़ी संख्या में मोबाइल फोन बन रहे हैं और वे निर्यात भी हो रहे हैं। सेमीकंडक्टर निर्माण की दिशा में जो सफलता मिलती दिख रही है, वह भी इसी पहल का परिणाम है, लेकिन यह समझना कठिन हो रहा है कि भारतीय उद्योग जगत देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वैसी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन क्यों नहीं कर पा रहा है, जैसी उसकी ओर से की जानी चाहिए थी?

आखिर क्या कारण है कि भारतीय उद्योग जगत चीनी वस्तुओं पर निर्भर है? तमाम प्रयासों के बावजूद चीन से वे वस्तुएं तो आ ही रही हैं, जिनका उत्पादन भारत में आसानी से संभव नहीं, लेकिन इसके साथ ही उन वस्तुओं का भी बड़े पैमाने पर आयात हो रहा है, जिन्हें देश में सहज ही निर्मित किया जा सकता है और जो एक समय निर्मित होती भी थीं। यह ठीक नहीं कि रोजमर्रा की जरूरतों की वस्तुएं भी बड़े पैमाने पर चीन से आ रही हैं।

सरकार को उन कारणों का पता लगाकर उनका निवारण करना होगा, जिनके चलते अतिसंपन्न एवं समर्थ उद्योगपति भी शोध एवं विकास में पर्याप्त निवेश नहीं कर रहे हैं। जब तक वे ऐसा नहीं करेंगे, तब तक न तो चीन की चुनौती का सामना किया जा सकता है और न ही अमेरिका के भारत विरोधी रवैये का। अच्छा यह होगा कि सरकार छोटे एवं मझोले उद्यमियों को देश को आत्मनिर्भर बनाने के अपने अभियान में शामिल करे।