विचार: आतंक ने पेश की नई चुनौती, सावधान रहना जरूरी
तमाम पहलुओं को देखते हुए दिल्ली आतंकी हमला यही रेखांकित करने वाला रहा कि आतंक के खिलाफ मुहिम में तनिक भी ढील नहीं दी जा सकती। कई जगहों को निशाने बनाने की तैयारी कर रहे आतंकियों के मंसूबों को नाकाम करने के लिए सुरक्षा एजेंसियां साधुवाद की पात्र हैं, लेकिन लाल किले धमाके को लेकर जिम्मेदारी एवं जवाबदेही से भी उन्हें मुक्त नहीं किया जा सकता।
HighLights
लाल किले के पास आतंकी हमला
सुरक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल
हर्ष वी. पंत। भारत के प्रधानमंत्री प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की जिस प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हैं, उसके निकट एक भयावह आतंकी हमले ने कई सवाल खड़े किए हैं। आतंक के प्रति जीरो टालरेंस की सरकार की नीति और सुरक्षा प्रतिष्ठान की सक्रियता के चलते पिछले कुछ वर्षों से देश आतंकी हमलों से एक बड़ी हद तक सुरक्षित रहा है, लेकिन इस हमले ने सुरक्षा को लेकर बने भरोसे में सेंध लगाने का काम किया है। यह भी कहा जा रहा है कि सुरक्षा एजेंसियों ने एक बड़ी साजिश को बेनकाब कर दिया और दिल्ली में हुआ धमाका उसी हताशा का परिणाम था। इससे कुछ समय पहले ही सुरक्षा एजेंसियों ने फरीदाबाद में डाक्टरों के एक आतंकी माड्यूल की धरपकड़ के साथ भारी मात्रा में विस्फोटक भी जब्त किया था।
माना जा रहा है कि इस एकाएक कार्रवाई से सकते में आए आतंकियों ने दिल्ली में बिना किसी योजना के धमाका कर अपनी भड़ास निकाली। भले ही इसे एकाएक किया गया आतंकी हमला कहा जा रहा हो, लेकिन इसमें निहित कुछ पहलुओं को कतई अनदेखा नहीं किया जा सकता। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कई जगह बेरोकटोक आवाजाही के बाद आतंकियों ने धमाके के लिए दिल्ली के एक प्रमुख स्थान को चुना। यह इलाका न केवल ऐतिहासिक रूप से महत्व रखता है, बल्कि वाणिज्यिक-सांस्कृतिक एवं पर्यटन गतिविधियों का भी प्रमुख केंद्र है। धमाके के लिए जो समय चुना गया, वह अपेक्षाकृत व्यस्तता वाला होता है। जाहिर है आतंकी ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाना चाहते थे। इससे आतंक से सुरक्षा को लेकर बना आवरण और भरोसे के भाव पर निश्चित ही चोट पहुंची है।
जांच एजेंसियां हरसंभव पहलू से जांच में जुटी हैं, लेकिन यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इसके पीछे पाकिस्तान ही है। पाकिस्तान आतंकवाद को अपनी राज्य-नीति के रूप में इस्तेमाल करता है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि आपरेशन सिंदूर के बाद भारत की कार्रवाई से सहमे पाकिस्तान ने अपनी रणनीति कुछ बदली है। यही कारण है कि शुरुआती जांच के दौरान इस हमले के तार बांग्लादेश से लेकर तुर्किये तक जुड़ते दिखे। वहीं गुलाम जम्मू-कश्मीर के पूर्व प्रधानमंत्री की स्वीकारोक्ति भी पाकिस्तान की बदनीयती की पुष्टि करने वाली रही है। हमले के दिन सुरक्षा एजेंसियां इसे लेकर आश्वस्त नहीं थीं कि यह आतंकी हमला है या नहीं, मगर जैसे-जैसे जांच प्रक्रिया आगे बढ़ती गई तो इसे लेकर संदेह के बादल भी छंटते गए। रही-सही कसर आत्मघाती हमलावर डाक्टर उमर के वीडियो ने पूरी कर दी कि इसके पीछे विध्वंसक जिहादी मानसिकता ही थी।
दिल्ली में आतंकी हमले के कुछ समय बाद ही पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में भी धमाका हुआ। यह धमाका एक न्यायिक परिसर में हुआ। यह क्षेत्र गणमान्य लोगों की उपस्थिति और आवाजाही वाला है। इस हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान यानी टीटीपी से जुड़े रहे जमात-उल-अहरार ने ली है। पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि भारत की शह पर यह आतंकी हमला हुआ है। इसके पीछे पाकिस्तान की मंशा काउंटर नैरेटिव तैयार करने की ही लगती है। उसका फार्मूला एकदम सीधा है कि इससे पहले दिल्ली हमले को लेकर पाकिस्तान पर सवाल उठें, वह इस्लामाबाद धमाके को लेकर भारत को निशाने पर ले। अफगानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान के साथ भी पिछले कुछ समय से पाकिस्तान की पटरी बैठ नहीं रही तो वह एक तीर से दो शिकार करने की फिराक में है कि भारत की शह पर अफगानिस्तान उसके यहां अशांति फैलाने में लगा है। पूरी दुनिया में आतंक के सबसे बड़े निर्यातक के रूप में कुख्यात पाकिस्तान यही चाहता है कि आतंकवाद को लेकर दुनिया भारत पर भी संदेह की दृष्टि देखने लगे।
मौजूदा परिदृश्य में इस रुझान को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि जब भी पाकिस्तान की पीठ पर अमेरिका का हाथ होता है तो वहां से आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है। दूसरे कार्यकाल में ट्रंप प्रशासन का पाकिस्तान के प्रति बदला हुआ रवैया इसका प्रमाण है। इसी वर्ष अप्रैल में हुआ पहलगाम आतंकी हमला इसका एक उदाहरण रहा। आपरेशन सिंदूर और फिर संघर्ष विराम एवं मध्यस्थता के मामले में राष्ट्रपति ट्रंप की जी-हुजूरी ने भी पाकिस्तान के लिए हालात अनुकूल बना दिए। जबकि ट्रंप के दावों को बार-बार खारिज कर अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में कुछ खटास आ गई। अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर संशय में भी इसकी छाप दिखी। यह अच्छी बात है कि पिछले कुछ दिनों से भारत के प्रति राष्ट्रपति ट्रंप का भारत के प्रति दृष्टिकोण नरम हुआ है। व्यापार समझौते को लेकर भी उम्मीद बढ़ी है, जिसे अंतिम रूप देने के लिए भारत को अपने प्रयासों में तेजी लानी होगी। अमेरिका के साथ व्यापार समझौता पाकिस्तान के विरुद्ध भारत को एक रणनीतिक कवच प्रदान करेगा। तब पाकिस्तान के खिलाफ किसी संभावित कार्रवाई के मामले में भारत के समक्ष अमेरिकी दखल की आशंका कमजोर पड़ जाएगी। अन्यथा ट्रंप का रवैया परेशानी खड़ी करता रहेगा।
तमाम पहलुओं को देखते हुए दिल्ली आतंकी हमला यही रेखांकित करने वाला रहा कि आतंक के खिलाफ मुहिम में तनिक भी ढील नहीं दी जा सकती। कई जगहों को निशाने बनाने की तैयारी कर रहे आतंकियों के मंसूबों को नाकाम करने के लिए सुरक्षा एजेंसियां साधुवाद की पात्र हैं, लेकिन लाल किले धमाके को लेकर जिम्मेदारी एवं जवाबदेही से भी उन्हें मुक्त नहीं किया जा सकता। अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शीर्ष स्तर से कड़े संदेश दिए हैं कि इसके दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा और पाताल से भी खोजकर उन्हें सबक सिखाया जाएगा। इस बीच यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सुरक्षा प्रतिष्ठान एवं खुफिया एजेंसियों को अपना मोर्चा और दुरुस्त करना होगा। इसके साथ ही कूटनीतिक प्रयासों को भी गति देनी होगी ताकि पाकिस्तान समेत भारत विरोधी शक्तियों की वैश्विक स्तर पर पोल खोलना जारी रहे कि कैसे कुछ देश क्षेत्रीय एवं वैश्विक शांति के दुश्मन बने हुए हैं।
(लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में उपाध्यक्ष हैं)













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