विचार: पूरी की जाए सस्ते कर्ज की जरूरत, निवेशकों का भरोसा जरूरी
किफायती कर्ज की उपलब्धता से घरेलू बाजारों को गति मिलेगी और बैंकिंग प्रणाली भी अधिक स्थिर होगी। ईएमआइ घटने से उपभोक्ताओं की खर्च योग्य आय बढ़ेगी, जिससे घर और वाहनों की मांग में वृद्धि होगी। रियल एस्टेट क्षेत्र, जो लंबे समय से धीमी बिक्री की चुनौती से जूझ रहा है, ब्याज दरों में कटौती से राहत महसूस करेगा।
HighLights
खुदरा महंगाई दस साल के निचले स्तर पर
सब्जियों और फलों के दाम घटे
आरबीआइ से ब्याज दर कटौती की उम्मीद
डॉ. जयंतीलाल भंडारी। महंगाई में आई गिरावट ने सस्ते कर्ज की नई संभावनाओं को जन्म दिया है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की हालिया रिपोर्ट के अनुसार बीते अक्टूबर में खुदरा महंगाई घटकर पिछले दस वर्षों के न्यूनतम स्तर 0.25 प्रतिशत पर आ गई, जबकि थोक महंगाई भी 27 महीने के निचले स्तर यानी शून्य से 1.21 प्रतिशत नीचे दर्ज की गई। यह गिरावट मुख्यतः सब्जियों, फलों, अंडों, फुटवियर, अनाज एवं उससे बने उत्पादों के साथ बिजली, परिवहन और संचार सेवाओं की कीमतों में कमी के कारण संभव हुई है। सितंबर से लागू जीएसटी दरों में कटौती का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जिससे खाद्य वस्तुओं के दाम सर्वत्र कम हुए हैं। क्रिसिल की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर में शाकाहारी थाली 17 प्रतिशत सस्ती होकर 27.8 रुपये की कीमत पर और मांसाहारी थाली 12 प्रतिशत सस्ती होकर 54.4 रुपये की दर पर उपलब्ध रही।
अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष 2025-26 में औसत खुदरा महंगाई घटकर 2.5 प्रतिशत पर स्थिर रह सकती है, जो पिछले वर्ष की 4.6 प्रतिशत दर की तुलना में काफी कम है। इससे अगले महीने होने वाली आरबीआइ की मौद्रिक नीति समिति बैठक में नीतिगत ब्याज दरों में कटौती की संभावना बढ़ गई है, ताकि विकास को नई गति मिल सके। इन दिनों राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की रिपोर्ट में यह बात रेखांकित की जा रही है कि टैक्स और महंगाई में गिरावट से भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ रही है तथा देश की क्रेडिट रेटिंग भी सुधर रही है। इसके बावजूद तीव्र आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए कर्ज सस्ता करने की आवश्यकता बनी हुई है। मूडीज की ग्लोबल मैक्रो आउटलुक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा ऊंचे आयात शुल्क लगाए जाने के बावजूद कम महंगाई और आर्थिक आधारभूत मजबूती के चलते भारत चालू वित्त वर्ष में 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ जी-20 देशों में सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा।
मूडीज ने आरबीआइ की सतर्क मौद्रिक नीति की भी सराहना की है, जिसने वृद्धि और महंगाई के बीच संतुलन बनाए रखा है। रिपोर्ट बताती है कि बीते महीने आरबीआइ ने रेपो दर को स्थिर रखकर यह संकेत दिया कि कम महंगाई और मजबूत विकास की परिस्थिति में वह सावधानीपूर्वक आगे बढ़ रहा है। हालांकि निजी क्षेत्र अभी भी बड़े पैमाने पर निवेश को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं लगता। ऐसे समय में वैश्विक विकास दर में सुस्ती और अमेरिकी टैरिफ बढ़ोतरी के बीच उद्योग-व्यापार के लिए सरल वित्त व्यवस्था की आवश्यकता और अधिक उभरकर सामने आई है।
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक फाइनेंस एंड पालिसी की मध्य-वर्षीय समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि जीएसटी दरों में कटौती और महंगाई में कमी से भारतीय अर्थव्यवस्था को स्पष्ट लाभ हुआ है, किंतु वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं को देखते हुए उद्योग-व्यापार को वित्तीय समर्थन देना आवश्यक है। विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट भी यही कहती है कि वर्ष 2047 तक भारत को 30,000 अरब डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए वित्तीय क्षेत्र में सुधार और आसान ब्याज दरों पर कर्ज उपलब्ध कराना अनिवार्य है।
आरबीआइ इस वर्ष फरवरी, अप्रैल और जून में रेपो दर में कुल एक प्रतिशत की कटौती कर चुका है, जिससे यह अब 5.5 प्रतिशत पर आ गई है। साथ ही नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) भी घटाकर तीन प्रतिशत कर दिया गया है। फिर भी मौजूदा वैश्विक चुनौतियों और भारतीय उद्योग-व्यापार की आवश्यकताओं को देखते हुए ब्याज दरों में और कटौती समय की मांग है। वैसे भी वित्तीय संकेतक लगातार सुधार दिखा रहे हैं और विदेशी संस्थागत निवेशक दोबारा भारतीय बाजारों में निवेश बढ़ा रहे हैं। विश्व के कई केंद्रीय बैंक भी ब्याज दरों में कमी कर रहे हैं।
ऐसे माहौल में सस्ते कर्ज से देश में आर्थिक गतिविधियों को तीव्र गति मिल सकती है। ट्रंप टैरिफ और वैश्विक व्यापारिक अनिश्चितताओं के बीच भारत की रणनीतिक तैयारी को देखते हुए आसान कर्ज उद्योग, व्यापार और सेवा क्षेत्रों में नई ऊर्जा भर सकता है। घटी हुई ब्याज दरें न केवल निवेशकों के विश्वास को बढ़ाएंगी, बल्कि नवाचार, उत्पादन और बाजार विस्तार के लिए भी नया आधार तैयार करेंगी। विदेशी निवेश को भी इससे बढ़ावा मिलेगा। साथ ही ग्रामीण और शहरी मांग में तेजी आएगी, जिससे विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों को मजबूती मिलेगी।
किफायती कर्ज की उपलब्धता से घरेलू बाजारों को गति मिलेगी और बैंकिंग प्रणाली भी अधिक स्थिर होगी। ईएमआइ घटने से उपभोक्ताओं की खर्च योग्य आय बढ़ेगी, जिससे घर और वाहनों की मांग में वृद्धि होगी। रियल एस्टेट क्षेत्र, जो लंबे समय से धीमी बिक्री की चुनौती से जूझ रहा है, ब्याज दरों में कटौती से राहत महसूस करेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि खुदरा और थोक महंगाई में आई तीव्र कमी तथा जीएसटी में कटौती के सकारात्मक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए आरबीआइ आगामी मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरों में कमी का महत्वपूर्ण निर्णय लेगा। इससे उद्योग-व्यापार की गति बढ़ेगी, उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी, बाजार मांग में मजबूती और निवेश के नए माहौल को बल मिलेगा। साथ ही वैश्विक व्यापार अनिश्चितता एवं ट्रंप की टैरिफ चुनौतियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था तेज गति से आगे बढ़ेगी।
(लेखक अर्थशास्त्री हैं)













कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।