विचार: पंथनिरपेक्षता का दिखावटी चेहरा, जेडी वेंस का पत्नी उषा के बारे में दिया गया बयान बहुत चर्चा में क्यों?
जेडी वेंस हों या ट्रंप, वे किसी न किसी रूप में मेक अमेरिका ग्रेट अगेन कहते हुए अपने धर्म को श्रेष्ठ साबित करना चाहते हैं। वेंस की ओर से अपनी पत्नी के धर्म बदलने की चाह के पीछे यही मान्यता दिखती है कि जो धर्म पति का हो, वही पत्नी का होना चाहिए। उषा वेंस क्या करती हैं, यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन संभव है कि वे पति की राष्ट्रपति बनने की इच्छा पूरी करने के लिए न चाहते हुए भी ऐसा करें। आखिर यह तथ्य है कि अतीत में अमेरिका में दूसरे धर्मों के कई नेता राष्ट्रपति के तब उम्मीदवार बने, जब उन्होंने ईसाइयत को अपना लिया।
HighLights
जेडी वेंस का पत्नी पर बयान
इंटरफेथ विवाह में धर्म का चुनाव
क्षमा शर्मा। पिछले दिनों अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस का पत्नी उषा वेंस के बारे में दिया गया एक बयान बहुत चर्चा में रहा। उनकी पत्नी उषा भारतीय मूल की हैं। विवाह भले ही उन्होंने वेंस से किया हो, वह मानती हिंदू धर्म को ही हैं। वेंस ने कहा कि उन्हें लगता है कि उषा एक न एक दिन ईसाई धर्म अपना लेंगी। वह उनके साथ चर्च भी जाती हैं और ईसाइयत में रुचि भी रखती हैं। वेंस ने यह भी बताया कि उनके बच्चों को ईसाई धर्म में दीक्षित किया गया है। वे उन्हीं तौर-तरीकों से पाले जा रहे हैं।
इस संदर्भ में कुछ साल पहले शाहरुख खान की पत्नी गौरी खान की ओर से दिया गया यह वक्तव्य याद आ गया कि वह हिंदू हैं, लेकिन उनका बेटा आर्यन इस्लाम को मानता है। इंटरफेथ शादियों में ऐसा हो सकता है कि पिता एक धर्म को मानता हो और मां किसी और धर्म को, लेकिन बच्चों के साथ मुसीबत यह होती है कि उन्हें चुनाव का कोई अधिकार नहीं दिया जाता। जन्मते ही उन पर माता-पिता का धर्म लाद दिया जाता है। प्रायः उनके नाम भी वैसे ही रखे जाते हैं। कई बार नाम फर्क भी हो सकते हैं, जैसे शाहरुख के बेटे का नाम आर्यन या जेडी वेंस के बेटे का नाम विवेक है।
हमें गलतफहमी है कि पश्चिम में लोग सही मायने में पंथनिरपेक्ष होते हैं। वे अपना मजहब किसी पर लादते नहीं हैं। एक ही घर में अलग-अलग पंथों को मानने वाले लोग रह सकते हैं और राज्य का कोई मजहब नहीं होता। वास्तविकता में ऐसा है नहीं। यदि ऐसा होता तो अमेरिकी राष्ट्रपतियों को बाइबिल पर हाथ रखकर शपथ क्यों लेनी पड़ती? क्यों इटली की प्रधानमंत्री मेलोनी को कहना पड़ता कि वे ईसाई हैं। जेडी वेंस के बयान को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। वे शायद ट्रंप के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के लिए कैथोलिक बहुल अमेरिका को खुश करना चाहते हैं। जब वेंस उपराष्ट्रपति बने थे तो भारतीय लोग बड़े खुश हुए थे कि चलो उनकी पत्नी का भारत से कुछ रिश्ता है।
उपराष्ट्रपति बनने के बाद वे भारत भी आए और दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर भी गए। न जाने क्यों जब भी किसी भारतीय मूल के व्यक्ति को कोई बड़ा पद मिलता है या उसे कोई सफलता हासिल होती है तो हम उसे अपने ही चश्मे से देखने लगते हैं। सोचते हैं कि अपनी जड़ों के कारण यह व्यक्ति भारत के लिए भी कुछ अच्छा करेगा, लेकिन अक्सर ऐसा होता नहीं है। राष्ट्रपति पद की डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कमला हैरिस के लिए भारत में बड़ी प्रार्थना की गई थी। वे बाइडेन प्रशासन में उपराष्ट्रपति थीं। हम भूल गए कि वे अतीत में किस तरह भारत विरोधी बयान दे चुकी हैं। हमें याद रखना चाहिए कि जो विदेशी नागरिक है, वह अपने ही देश को प्राथमिकता देगा, भले ही उसकी जड़ें भारत में रही हों।
मजहबी कारणों से इस धरती पर जितने लड़ाई-झगड़े और खून–खराबा हुआ है, उसकी कल्पना करना मुश्किल है। इस लड़ाई-झगड़े के पीछे मूल सोच यह रहता है कि हमारा मजहब दूसरे से श्रेष्ठ है। इसलिए जब तक यह पूरी दुनिया ही हमारे मजहब के झंडे तले नहीं आ जाती, तब तक हम चैन से नहीं बैठेंगे। मतांतरण पर अरबों–खरबों खर्च इसीलिए किए जाते हैं। जो लोग विविधता को सेलिब्रेट करते हैं, वही यह भी चाहते हैं कि दुनिया में सिर्फ हमारी पसंद का ही धर्म रहना चाहिए। उन्हें लगता है कि ऐसा होने पर ही दुनिया जीने के काबिल रहेगी।
एक लड़की का दशकों पहले अमेरिका में रहने वाले एक लड़के से विवाह हुआ। लड़की हिंदू थी, लड़का ईसाई। लड़के ने कहा कि उसकी कोई और शर्त नहीं है, सिवाय इसके कि लड़की ईसाई बन जाए। लड़की ने ऐसा ही किया। साथ में पढ़ने वाली एक महिला ने एक मुस्लिम से विवाह किया। उसने धर्म नहीं बदला, लेकिन उसके दोनों बच्चे पति के धर्म को ही मानने वाले बने। एक मुसलमान लड़की स्विट्जरलैंड में उच्च पद पर काम करती थी। वह दक्षिण अफ्रीका से आई थी। उसका इंग्लैंड के एक लड़के से प्रेम हो गया।
जब दोनों को लगा कि विवाह कर लेना चाहिए तो लड़की ने कहा कि उनके बच्चे मुसलमान ही होंगे। क्या ऐसे विवाह सच में प्रेम विवाह हैं? आम तौर पर लोग अपनी आने वाली पीढ़ी को उसी रूप में देखना चाहते हैं, जैसे वे खुद हैं। साफ है कि बातें भले ही पंथनिरपेक्षता और सारे धर्मों का सम्मान करने को लेकर की जाएं, चाहत अपने धर्म के प्रसार की ही होती है। दुनिया में कोई और समूह इतने बड़े नहीं हैं, जितने धार्मिक समूह। इनके हिस्से बनकर हम ताकतवर महसूस करते हैं, क्योंकि कोई भी अकेला रहकर जी नहीं सकता। इसीलिए सब किसी न किसी धर्म का हिस्सा बनना चाहते हैं। जो लोग खुद को नास्तिक कहते हैं वे भी कई बार बेहद कट्टर साबित होते हैं। उदाहरण के तौर पर हिटलर और जिन्ना का नाम लिया जाता है।
जेडी वेंस हों या ट्रंप, वे किसी न किसी रूप में मेक अमेरिका ग्रेट अगेन कहते हुए अपने धर्म को श्रेष्ठ साबित करना चाहते हैं। वेंस की ओर से अपनी पत्नी के धर्म बदलने की चाह के पीछे यही मान्यता दिखती है कि जो धर्म पति का हो, वही पत्नी का होना चाहिए। उषा वेंस क्या करती हैं, यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन संभव है कि वे पति की राष्ट्रपति बनने की इच्छा पूरी करने के लिए न चाहते हुए भी ऐसा करें। आखिर यह तथ्य है कि अतीत में अमेरिका में दूसरे धर्मों के कई नेता राष्ट्रपति के तब उम्मीदवार बने, जब उन्होंने ईसाइयत को अपना लिया।
(लेखिका साहित्यकार हैं)













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